Situation And Source Of Air Pollution Will Be Identified Monitoring Started With Iit S Sensors
Air Quality: वायु प्रदूषण के हालात और सोर्स की होगी सटीक पहचान, आईआईटी कर रहा सेंसर से निगरानी
गांव जंक्शन डेस्क, कानपुर
Published by: Shailesh Arora
Updated Mon, 20 Nov 2023 05:52 PM IST
सार
एनसीआर समेत देश के तमाम हिस्सों में वायु प्रदूषण गंभीर चिंता का विषय बना हुआ है। अब वायु प्रदूषण के हालात और वजह की सटीक जानकारी मिल पाएगी। आईआईटी कानपुर यूपी, बिहार में सेंसर तकनीक और आधुनिक मोबाइल प्रयोगशाला की मदद से इसकी निगरानी कर रहा है।
प्रदूषित हवा के घनत्व की मिलेगी जानकारी
- फोटो : गांव जंक्शन
वायु गुणवत्ता की वर्तमान स्थिति और सटीक सोर्स को जानने के लिए आईआईटी कानपुर ने बड़ी तैयारी की है। आईआईटी के सेंटर आत्मन (एडवांस्ड टेक्नोलॉजीज फॉर एयर क्वालिटी इंडिकेटर) की तरफ से यूपी और बिहार के प्रत्येक विकास खंड में प्रदूषण मापी सेंसर लगाए जा रहे हैं। अब तक जो सेंसर लगाए गए हैं उसकी रिपोर्ट्स भी मिलने लगी हैं।
इनसे प्रदूषित हवा के निर्माण, सघनता और प्रवाह की जानकारी मिल रही है। इंजीनियर्स की मानें तो दोनों राज्यों में ऐसे जिले भी हैं जहां हवा को प्रदूषित करने वाली गैसों का उत्सर्जन लगभग शून्य है। उन जिलों में दूसरे क्षेत्रों से हवा प्रदूषित हो रही है।
बिहार में सेंसर लगने का काम पूरा, यूपी में जारी
आत्मन सेंटर के प्रमुख और आईआईटी कानपुर में सिविल इंजीनियरिंग व सस्टेनेबल एनर्जी इंजीनियरिंग विभाग के प्रो. एसएन त्रिपाठी बताते हैं, यह देश का सबसे बड़ा सेंसर आधारित वायु गुणवत्ता मापक नेटवर्क है, जिसमें मोबाइल प्रयोगशाला को भी शामिल किया गया है। बिहार में सेंसर लगाने का काम पूरा हो चुका है। वहां सभी विकासखंडों में कुल 540 सेंसर लगाए गए हैं।
यूपी में कुल 840 सेंसर लगाए जाने हैं जिनमें से करीब 310 लग चुके हैं। बाकी सेंसर भी जनवरी तक लगा लिए जाएंगे। इस नेटवर्क की रिपोर्ट, वायु बहाव की गति और दिशा का विश्लेषण कर यह पता किया जा सकेगा कि किस क्षेत्र में प्रदूषण का स्तर किस दिन, किस समय और कितना और क्यों है।
यह भी पता लगाया जा सकेगा कि हवा को प्रदूषित करने वाली गैस का उत्सर्जन किस हिस्से में हो रहा है। विश्लेषण में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशनी लर्निंग को शामिल किया है। दोनों राज्यों में पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड, पर्यावरण एवं वन विभाग और ग्राम्य विकास विभाग के साथ मिलकर काम किया जा रहा है। हाईपर लोकल मॉनिटरिंग सिस्टम
इस प्रोजेक्ट के फायदों का जिक्र करते हुए प्रो. एसएन त्रिपाठी कहते हैं, वर्तमान में कहीं भी ब्लॉक स्तर पर सेंसर नहीं लगे हैं। बल्कि कई जिले ऐसे हैं जहां वायु गुणवत्ता मापने के लिए एक भी सेंसर नहीं। ऐसे में वायु प्रदूषण की सही स्थिति और सटीक वजह नहीं पता चल सकती। पहली बार ब्लॉक स्तर पर सेंसर लग रहे। इस प्रोजेक्ट के तहत जब वायु की गुणवत्ता मापी जाएगी तो सही जानकारी मिलेगी।
यह हाईपर लोकल मॉनिटरिंग सिस्टम है। उदाहरण के लिए मोहल्ले के हिसाब से पता चल सकेगा कि कहां की हवा कितनी और क्यों प्रदूषित हो रही है। इसमें एयर शेड तकनीक का इस्तेमाल किया गया है। सरल शब्दों में समझें तो हमने किसी जिले या क्षेत्र को अपने हिसाब से बांटा है। हवा यह नहीं जानती कि बरेली कहां खत्म हो रहा और सहारनपुर कहां शुरु हो रहा।
हो सकता है बरेली से उठने वाला धुआं सहारनपुर तक हवा के बहाव से जा रहा हो। इससे सहारनपुर की हवा प्रदूषित होगी। वायु प्रदूषण को खत्म करने की योजना बनाने के लिए इंटीग्रेटेड मैनेजमेंट जरूरी है। जैसे लखनऊ में अगर वायु प्रदूषण नियंत्रित करना है तो योजना हरदोई, बाराबंकी, सीतापुर, उन्नाव सबको ध्यान में रखकर बनानी होगी।
सेंसर बताएंगे हवा में किस वजह से प्रदूषण
प्रोजेक्ट के तहत इस्तेमाल की जा रही मोबाइल प्रयोगशाला में लगे आधुनिक यंत्र पॉल्यूशन सोर्स के फिंगर प्रिंट को कैप्चर करते हैं। असल में जिस तरह हर व्यक्ति का एक यूनिक फिंगर प्रिंट होता है वैसे ही प्रत्येक धुएं का एक यूनिक केमिकल कॉम्बिनेशन। इससे पता चलता है कि वह पराली के जलने का धुआं है या गाड़ी का या ईंट भट्टे का।
सेंसर और मोबाइल प्रयोगशाला की मदद से यह भी पता चलेगा कि किस जगह वायु प्रदूषण का क्या कारण है। जो कारण है, वह उसी क्षेत्र में बन रहा या कहीं और से धुआं हवा के साथ आ रहा। यह सारी जानकारी होने के बाद वायू प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए योजना तैयार करना सरल होगा।
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